Saturday, November 5, 2011

अमृतमय
मैं तो बिन्दु हूँ
अमृत-समुन्दर का,
छोड़ समुन्दर अम्बर में
ऊपर चला गया था ।
अब नीचे उतर
मिला हूँ अमृत- धारा से ;
चल रहा हूँ आगे
समुन्दर की ओर ।
पाप-ताप से राह में
सूख जाऊँगा अगर,
तब झरूँगा मैं ओस बनकर ।
अमृतमय अमृत-धारा के संग
समा जाऊँगा समुन्दर में ॥
- गंगाधर मेहेर
- अनुवाद - डॉ. हरेकृष्ण मेहेर
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